(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)
'भगवान सूर्यनारायण तेज रश्मियों से अंधकार मिटाते हैं। हे सूर्यदेव ! मेरे जीवन में तेजस्विता आये, तत्परता आये।' – ऐसा सात बार चिंतन करके रोज सूर्य को अर्घ्य देने से आपका जीवन तेजस्वी होगा, तत्पर होगा। आपमें तप की वृद्धि होगी।
हमारे तन-मन में जो कुछ भी बल, ओज है, वह सीधे-अनसीधे सूर्यनारायण की ही कृपा से है। तो सूर्य के तेज को हम अपने में और अवशोषित करेंगेः
उद्वयं तमसस्परि ज्योतिष्पश्यन्त उत्तरम्।
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरूत्तमम्।।
'तमिस्रा (अंधकार) से दूर श्रेष्ठतम ज्योति को देखते हुए हम ज्योतिस्वरूप और देवों में उत्कृष्टतम ज्योति (सूर्य∕परमात्मा) को प्राप्त हों।' (ऋग्वेदः 1.50.10)
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः।
दृशे विश्वाय सूर्यम्।।
'ये ज्योतिर्मयी रश्मियाँ सम्पूर्ण प्राणियों के ज्ञाता सूर्यदेव को एवं समस्त विश्व को दृष्टि प्रदान करने के लिए विशेषरूप से प्रकाशित होती हैं।' (ऋग्वेदः 1.50.1)
इन दोनों मंत्रों के द्वारा सूर्यनारायण को सात अंजलि जल देने का नियम अगर आप ठान लेंगे तो आपके जीवन में आने वाला छिछोरापन, अहं, भड़कीला स्वभाव अथवा साधना की ऊँचाई से गिराने वाली गंदी आदतें – ये सब छोड़ने की आपमें क्षमता आ जायेगी। लोटे में जल ले लो, उसमें से अंजलि भर-भर के सात बार सूर्यदेव को जल अर्पण कर दिया बस ! ऐसा करने वाला व्यक्ति अदभुत ज्ञान-प्रकाश का धनी बनता है। इनसे मानसिक दुःखों का तो नाश होता ही है, शारीरिक दुःखों का अंत करने में भी ये मंत्र सक्षम हैं।
वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने में कठिनाई होती हो तो लौकिक भाषा में केवल इनके अर्थ का चिंतन या उच्चारण कर सकते हैं।
बुद्धि के अधिष्ठाता देव सूर्यनारायण हैं। अतः यह प्रयोग बुद्धिवर्धक भी होगा और सामर्थ्य को पचाने वाला, आवेशों के सिर पर पैर रखने वाला सददृष्टिकोण भी इससे मिलेगा। ऋग्वेद के ये मंत्र बच्चों के लिए तो वरदान होंगे।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 5, अंक 162
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