8.9.10

भिन्न-भिन्न दिशाओं से आने वाली हवा का स्वास्थ्य पर प्रभाव



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अपान मुद्रा
*विधिः* अँगूठे के अग्रभाग से मध्यमा और अनामिका (छोटी उँगली के पासवाली उँगली)
के अग्रभागों को स्पर्श करें। बाकी की दो उँगलियाँ सहजावस्था में सीधी रखें।

*अवधिः* इस मुद्रा का अभ्यास किसी भी समय, कितनी भी अवधि के लिए कर सकते हैं
परंतु प्रतिदिन नियमित रूप से करें।

*लाभः* इस मुद्रा के अभ्यास से शरीर की अंदरूनी सफाई में मदद मिलती है। आँतों
में फँसे मल और विषैले पदार्थों को आसानी से बाहर निकालने में यह मुद्रा काफी
असरदार है। इसके फलस्वरूप शारीरिक व मानसिक पवित्रता में वृद्धि होती है और
अभ्यासकर्ता में सात्त्विक गुणों का समावेश होने लगता है। मूत्र-उत्सर्जन में
कठिनाई, वायुदोष, अम्लदोष (पित्तदोष), पेटदर्द, कब्जियत और मधुमेह जैसी
बीमारियों में भी यह मुद्रा काफी लाभदायक सिद्ध हुई है। जिन्हें पसीना न आने के
कारण परेशानी होती हो, वे इस मुद्रा के अभ्यास से जल्द ही उससे छुटकारा
पा सकते हैं।
यदि छाती और गले में कफ जम गया हो तो इस मुद्रा के अभ्यास से ऐसे उपद्रवी कफ को
भी सहज ही शरीर से बाहर किया जा सकता है। इसका नियमित अभ्यास कैंसर जैसी भयानक
बीमारी की भी रोकथाम करने में सहायक है।

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भिन्न-भिन्न दिशाओं से आने वाली हवा का स्वास्थ्य पर प्रभाव

*पूर्व दिशा की हवाः *भारी, गर्म, स्निग्ध, दाहकारक, रक्त तथा पित्त को दूषित
करने वाली होती है। परिश्रमी, कफ के रोगों से पीड़ित तथा कृश व दुर्बल लोगों के
लिए हितकर है। यह हवा चर्मरोग, बवासीर, कृमिरोग, मधुमेह, आमवात, संधिवात
इत्यादि को बढ़ाती है।

*दक्षिण दिशा की हवाः *खाद्य पदार्थों में मधुरता बढ़ाती है। पित्त व रक्त के
विकारों में लाभप्रद है। वीर्यवान, बलप्रद व आँखों के लिए हितकर है।

*पश्चिम दिशा की हवाः *तीक्ष्ण, शोषक व हलकी होती है। यह कफ, पित्त, चर्बी एवं
बल को घटाती है व वायु की वृद्धि करती है।

*उत्तर दिशा की हवाः *शीत, स्निग्ध, दोषों को अत्यन्त कुपित करने वाली,
स्निग्धकारक
व शरीर में लचीलापन लाने वाली है। स्वस्थ मनुष्य के लिए लाभप्रद व मधुर है।

अग्नि कोण की हवा दाहकारक एवं रूक्ष है। नैऋत्य कोण की हवा रूक्ष है परंतु जलन
पैदा नहीं करती। वायव्य कोण की हवा कटु और ईशान कोण की हवा तिक्त है।

*ब्राह्म मुहूर्त (सूर्योदय से सवा दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्योदय तक का समय)
में सभी दिशाओं की हवा सब प्रकार के दोषों से रहित होती है। अतः इस वेला में
वायुसेवन बहुत ही हितकर होता है। *

खस, मोर के पंखों तथा बेंत के पंखों की हवा स्निग्ध एवं हृदय को आनन्द देने
वाली होती है।

जो लोग अन्य किसी भी प्रकार की कोई कसरत नहीं कर सकते, उनके लिए टहलने की कसरत
बहुत जरूरी है। इससे सिर से लेकर पैरों तक की करीब 200 मांसपेशियों की
स्वाभाविक ही हलकी-हलकी कसरत हो जाती है। टहलते समय हृदय की धड़कन की गति 1
मिनट में 72 बार से बढ़कर 82 बार हो जाती है और श्वास भी तेजी से चलने लगता है,
जिससे अधिक आक्सीजन रक्त में पहुँचकर उसे साफ करता है।
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चतुर्मास में जीवनशक्ति बढ़ाने के उपायः

- साधारणतया चतुर्मास में पाचनशक्ति मंद रहती है। अतः आहार कम करना चाहिए।
पन्द्रह दिन में एक दिन उपवास करना चाहिए।
- चतुर्मास में जामुन, कश्मीरी सेब आदि फल होते हैं। उनका यथोचित सेवन करें।
- हरी घास पर खूब चलें। इससे घास और पैरों की नसों के बीच विशेष प्रकार का
आदान-प्रदान होता है, जिससे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
- गर्मियों में शरीर के सभी अवयव शरीर शुद्धि का कार्य करते हैं, मगर
चतुर्मास शुद्धि का कार्य केवल आँतों, गुर्दों एवं फेफड़ों को ही करना होता
है। इसलिए सुबह उठने पर, घूमते समय और सुबह-शाम नहाते समय गहरे श्वास लेने
चाहिए। चतुर्मास में दो बार स्नान करना बहुत ही हितकर है। इस ऋतु में रात्रि
में जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना बहुत आवश्यक है।

ऋषि प्रसाद,अगस्त 2010