27.9.11

शरद-ऋतुचर्या



(शरद ऋतुः 23 अगस्त से 22 अक्तूबर)
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से संचित पित्तदोष शरद ऋतु में प्रकुपित होता है, जठराग्नि मंद हो जाती है। परिणामस्वरूप बुखार, पेचिश, उलटी, दस्त, मलेरिया आदि रोग होते हैं। अतः इन दिनों में ऐसा आहार एवं औषधि लेनी चाहिए जो पित्त का शमन करे।
आहारः पित्तदोष के शमन के लिए मीठे, कड़वे एवं कसैले रस का उपयोग विशेष रूप से करना चाहिए। सब्जियों में कुम्हड़ा (पेठा), लौकी, करेला, परवल, तोरई, गिल्की, गोभी, कंकोड़ा, पालक, चौलाई, गाजर, कच्ची ककड़ी, फलों में अनार, आँवला, पके केले, अमरूद (जामफल) मोसम्बी, नींबू, नारियल, ताजे अंजीर, पका पपीता, अंगूर, मक्के का भुट्टा, सूखे मेवों में चारोली, पिस्ता तथा मसालों में जीरा, धनिया, इलायची, हल्दी, सौंफ लिये जा सकते हं।
इसके अलावा दूध, घी, मक्खन, मिश्री नारियल का तेल तथा अरण्डी का तेल बहुत लाभदायी है। तेल की जगह गाय के देशी घी का उपयोग उत्तम है। घी व दूध उत्तम पित्तशामक है, अतः इनका उपयोग विशेष रूप से करना चाहिए।
शरद ऋतु में खीर खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। श्राद्ध के दिनों में 16 दिन तक दूध, चावल एवं खील का सेवन पित्त शामक है। शरद पूनम की शीतल रात्रि में छत पर चन्द्रमा की किरणों में रखी हुई दूध-चावल की खीर सर्वप्रिय, पित्तशामक, शीतल एवं सात्त्विक आहार है।
पके केले में घी और इलायची डालकर खाने से लाभ होता है। गन्ने का रस एवं नारियल का पानी खूब फायदेमंद है। काली द्राक्ष(मुनक्का), सौंफ एवं धनिया मिलाकर बनाया गया पेय गर्मी का शमन करता है।
इस ऋतु में पित्तदोष का प्रकोप करने वाली खट्टी, खारी(नमकीन) एवं तीखी वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। भरपेट भोजन, दिन की निद्रा, बर्फ, दही, खट्टी छाछ व तले हुए पदार्थों का सेवन न करें। गुलकंद व मीठे सेब का उपयोग तथा बायें नथुने से श्वास लेकर दायें से छोड़ना – ऐसा एक से पच्चीस बार दिन में दो बार करना गर्मी-शमन में वरदानरूप है।
बाजरा, उड़द, कुलथी, अरहर(तुअर), चौलाई, मिर्च, लहसुन, अदरक, बैंगन, टमाटर, इमली, हींग, तिल, मूँगफली, सरसों आदि पित्तकारक होने से त्याज्य हैं।
अगर पित्त विकार होता हो तो पित्त के शमनार्थ आँवला चूर्ण, अविपत्तिकरचूर्ण अथवा त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए। आँवला और मिश्री के मिश्रण से बनाया गया आश्रम-निर्मित आँवला चूर्ण शरद ऋतु में अत्यन्त लाभदायी है। यह बढ़े हुए पित्त को मल के साथ बाहर निकाल कर शीतलता, ताजगी, स्फूर्ति व बल प्रदान करता है। ताजे आँवलों से बनाया गया 'संत च्यवनप्राश' (आश्रम के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध) भी पित्त के शमन तथा रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाने के लिए श्रेष्ठ औषधि है।
ऋतुजन्य विकारों से बचने के लिए अन्य दवाइयों पर खर्च करने की अपेक्षा आँवला, धनिया और सौंफ के समभाग मिश्रण में उतनी ही मिश्री मिलाकर एक चम्मच चूर्ण भोजन के आधे घंटे बाद पानी के साथ लेना हितकर है।
इस ऋतु में जुलाब लेने से शरीर से पित्त दोष निकल जाता है। जुलाब के लिए हरड़ उत्तम औषधि है। शरद ऋतु में हरड़ में समभाग मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिए।
विहारः इन दिनों में रात्रि जागरण, रात्रि भ्रमण अच्छा होता है, इसीलिए नवरात्रियों में रात को कीर्तन-भजन (जागरण) आदि का आयोजन किया जाता है। रात्रि जागरण 12 बजे तक का ही माना जाता है। अधिक जागरण से और सुबह व दोपहर को सोने से त्रिदोष प्रकुपित होते हैं, जिससे स्वास्थ्य बिगड़ता है।
शरद पूनम की रात्रि को जागरण, भ्रमण, मनोरंजन आदि को आयुर्वेद ने उत्तम पित्तनाशक विहार के रूप में स्वीकार किया है। इस रात्रि में ध्यान, भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक है।
श्राद्ध के दिनों में एवं नवरात्रि में पितृपूजन हेतु संयमी रहना चाहिए। कड़क ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। 'दिव्य प्रेरणा प्रकाश' पुस्तक के नियमित अध्ययन से ब्रह्मचर्य में मदद मिलेगी।
स्वास्थ्य रक्षा के कुछ सरल प्रयोगः
अतिसारः जामुन के 25-30 कोमल पत्ते पाँच बताशों के साथ पीसकर उसका रस पिलाने से अतिसार तुरंत ठीक हो जाता है।
अश्मरी (पथरी)- 25 ग्राम सहजन की जड़ की छाल को 250 ग्राम पानी में उबालें और छान लें। थोड़ा गर्म रहने पर पिलायें। कैसी भी पथरी क्यों न हो, कट-कटकर निकल जाती है।
आरोग्याम्बुः एक लिटर पानी को इतना उबालें कि 250 ग्राम शेष रह जाये, इसे आरोग्याम्बु कहते हैं। इसे पीने से खाँसी, दमा और कफ के रोग दूर होते हैं। बुखार शीघ्र उतर जाता है। यह भूख लगाता है। खायी हुई वस्तु शीघ्र पच जाती है। बवासीर, पाण्डुरोग, वायुगोला और हाथ-पैरों के शोथ को दूर करता है। इस प्रकार के जल का सदा प्रयोग किया जाय तो रोग उत्पन्न ही नहीं होते।
आलस्यः शरीर में आलस्य हो, उठते बैठते दर्द होता हो, जोड़ों दर्द हो तो भोजन कम करें तथा भोजन के पश्चात अंतिम ग्रास के साथ दो चुटकी अजावायन चबा लें। सारे उपद्रव शांत हो जायेंगे।
जुकामः सुबह तुलसी के पत्तों को मसलकर उनका रस सूँघने से जुकाम में फायदा होता है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2011, पृष्ठ संख्या 29,30, अंक 224
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