14.10.10

व्यसनों से मुक्त

 

          “उसीका जीवन सफल है जिसके जीवन में दृढ़ता है | उसीका जीवन सफल है जिसके जीवन में सत्संग के लिए स्नेह है | उसीका मनुष्य जन्म सफल है जिसके जीवन में सादगी , सच्चाई और प्रवित्रता है , जीवन व्यसनों से मुक्त है | उसे अनुकुलताएँ बाँध नहीं सकती और प्रतिकुलताएँ डिगा नहीं सकती |”

                 एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये | वहाँ एक महिला बैठी मिली | उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी | कालिदास ने उस महिला से पूछा : ” क्या बेच रही हो ? “
          महिला ने जवाब दिया : ” महाराज ! मैं पाप बेचती हूँ | “
          कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा : ” पाप और मटके में ? “
          महिला बोली : ” हाँ , महाराज ! मटके में पाप है | “
          कालिदास : ” कौन-सा पाप है ? “
          महिला : ” आठ पाप इस मटके में है | मैं चिल्लाकर कहती हूँ की मैं पाप बेचती हूँ पाप … और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है |”
          अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ : ” पैसे देकर लोग पाप ले जाते है ? “
          महिला : ” हाँ , महाराज ! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है | “
          कालिदास : ” इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है ? “
          महिला : ” क्रोध ,बुद्धिनाश , यश का नाश , स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय  , चोरी , असत्य आदि दुराचार , पुण्य का नाश , और स्वास्थ्य का नाश … ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है | “
          कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है | किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है | वे बोले : ” आखिरकार इसमें क्या है ? ” //
         महिला : ” महाराज  ! इसमें शराब है शराब ! “
कालिदास  महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले : ” तुझे धन्यवाद है ! शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और ‘ मैं पाप बेचती हूँ ‘  ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते है | धिक्कार है ऐसे लोगों को ! “
        जो लोग बीडी या सिगारेट पीते  है तो बीस मिनट के अन्दर ही उनके शरीर में निकोटिन नामक जहर फ़ैल जाता है | बीडी पीनेवाले  व्यक्ति के साथ कमरे में जितने व्यक्ति होते है उन्हें भी उतनी ही हानि होती है जितनी हानि बीडी पीनेवाले व्यक्ति को होती है |
          बीडी   कहे   मैं   यम   की   मासी   |
          एक हाथ खड्ग , दुसरे हाथ फाँसी ||
          बीडी पीनेवाला मनुष्य खुद की आयु तो नष्ट करता ही है , साथ ही साथ अपने पासवालों के जीवन को भी नष्ट करने का पाप अपने  सिर पर लेता है | एक बीडी पिने से छः मिनट की आयुष्य का नाश होता है | फिर भी लोग पैसे देकर मुँह में आग भरते है , धुआँ भरते है | कितने बुद्धिमान है वे लोग !
          समर्थ रामदास कहते है की एक माला करने से जो सात्विकता पैदा होती है | बीडी पियो , तम्बाकू खाओ या तपकिर ( नास , छींकणी ) मुँह में भरो इनसे बहुत हानि होती है |
          किसी व्यक्ति ने मुझे पात्र लिखा : ‘ बापू ! आप कहते है बीडी नहीं पीना चाहिए तो फिर भगवान् ने उसे बनाया ही क्यों ? भगवान् ने बीडी बनाई है तो पिने के लिए ही बनाई है | ‘
          वास्तव में भगवान् ने बीडी नहीं बनाई , तम्बाकू बनाया है और वह भी दवाइयों में काम आता है |बीडी तो मनुष्य ने बनाई है | यदि भगवान् ने जो कुछ बनाया है उन सबको तुम उपयोग में लेना चाहते हो तो लो , मेरी मनाही नहीं है परन्तु भगवान् ने तो  धतुरा भी बनाया है | तुम उसकी सब्जी क्यों नहीं बनाते ? भगवान् ने काँटे भी बनाए है | तुम उन पर क्यों नहीं चलते ? जैसे छुरी -चाक़ू सब्जी कांटने के लिए है वैसे ही तम्बाकू दवाइयों के लिए है | जैसे चाक़ू – छुरी पेट में भोंकने के लिए नहीं है | जब तुम आक-धतूरे को नहीं खाते , उसमें अपनी बुद्धि का उपयोग करते हो तो फिर यह जानते हुए भी की बीडी , सिगरेट , तम्बाकू , शराब आदि हानिकारक है तो क्यों लेते हो ?
          एक शराबी  था | शराब की प्यालियाँ पीकर , अपनी गाडी चलाते  हुए  घर की ओर जा रहा था | रास्ते में उसकी गाडी के टायर में पंक्चर हो गया | वह गाड़ी खड़ी करके पंक्चरवाले पहिये के नट-बोल्ट खोलकर पीछे रखता गया | पीछे एक नाली थी | उसके सारे नट-बोल्ट पानी में बह गये | जब उसने दूसरा पहिया निकला और लगाने गया तो सारे नट-बोल्ट नाली में लुढ़क चुके थे | वह रोने लगा : ‘ अब मैं घर कैसे पहुँचूँगा ? ‘ //
          बगल में पागलों का एक अस्पताल था | एक पागल आरामकुर्सी पर बैठकर शराबी की सब हरकतें देख रहा था | शराबी बडबडा  रहा था  की ‘ अब घर कैसे जाऊं ? ‘ वह कोसता भी जा रहा था की ‘ यहाँ नाली किसने बनाई  ? म्युनिसीपालिटी  ( नगर-निगम ) के लोग कैसे है | ‘ आदि -आदि | इतने में वह पागल आया और बोला :
          ” रोते क्यों हो यार ! बाकी के तीन पहियों में एक एक नट निकालकर चौथे पहिये में लगा दो और घर पहुँच जाओ | “
          शराबी ने पूछा : ” आप रहते कहाँ हो ? “
          उसने जवाब दिया : ” मैं पागलों की अस्पताल में रहता हूँ और अपना इलाज  करवाने आया हूँ | “
          शराबी : ” क्या आप  सचमुच इलाज करवाने  आये हो ? “
          पागल : ” हाँ , मैं इलाज करवाने के लिए ही आया हूँ | मुझे थोड़ी दिमाग की तकलीफ थी इसीलिए आया हूँ | मैं एक  पागल हूँ |”
          शराबी : ” आप पागल हो फिर भी मुझे अक्कल दे रहे हो ? “
          पागल : ” मैं पागल हूँ पर तुम्हारे जैसा शराबी नहीं हूँ | “
          शराबी मनुष्य तो पागल से भी ज्यादा पागल होता है | पागल व्यक्ति तो केवल थोडा नुकसान करता है  जबकि शराबी व्यक्ति के शरीर में अल्कोहल फ़ैल जाता है | अल्कोहल एक प्रकार का जहर है | हम जैसा खाते-पीते है उसका असर हमारे शरीर पर जरुर होता है | अल्कोहल के कारण शराबी के बेटे को आँख का कैंसर हो सकता है क्योंकि शराबी के रक्त में अल्कोहल ज्यादा होता है | उसके बेटे को नहीं तो बेटे के बेटे को , उसको भी नहीं तो बेटे के बेटे के बेटे को … इस प्रकार दसवी पीढ़ी तक के बालक को भी आँख का कैंसर होने की संभावना रहती है | शराबी अपनी जिन्दगी तो बिगाड़ता ही है किन्तु दसवी पीढ़ी तक को बिगाड़ देता है | जब शराबी दसवी पीढ़ी तक की बर्बादी कर सकता है तो राम-नाम इक्कीस पीढ़ियों को तार दें इसमें क्या आश्चर्य है ?
          जाम पर जाम पिने से क्या फायदा ?
          रात बीती  सुबह  को  उतर  जायेगी |
          तू  हरिनाम  की  प्यालियाँ  पी   ले   |
          तेरी  सारी  जिंदगी  सुधर   जायेगी  ||
          मनुष्य यदि किसी भी व्यसन का आदि हो जाए तो उसके स्वास्थ्य की बहुत हानि होती है | चाय तो मनुष्य के लिए बहुत ही हानिकारक है | खाली पेट चाय पिने से बहुत  नुकसान होता है | चाय पिने से स्वभाव चिडचिडा हो जाता है , दिमाग ठिकाने नहीं रहता , अजीर्ण और कब्जियत की बीमारी हो जाती है | चाय पाचक रसों में रुकावट पैदा करती है | इन्ही सब कारणों से जो लोग चाय-कॉफ़ी बहुत ज्यादा पीते है उनका शरीर पतला रहता है , गाल बैठ जाते है , चेहरा मलिन होता है तथा सिरदर्द की तकलीफ अधिक होती है | //
          चाय के अधिक सेवन से पित्त का प्रकोप होता रहता है | बाल जल्दी झड़ने लगते है अथवा सफ़ेद हो जाते है | वात का प्रकोप और लकवे की संभावना बढ़ जाती है | शरीर कमजोर हो जाता है , नसें कमजोर होने से पक्षाघात भी हो जाता है |
          जो स्वयं चाय पीता है उसको तो हानि होती ही है किन्तु यदि माता-पिता चाय पीते है तो बालक कमजोर पैदा होते है | जैसा बीज होता है वैसा ही वृक्ष होता है | चाय तो पीनेवाले पीते है किन्तु भुगतना उनके बच्चों को भी पड़ता है | शराब तो पीनेवाले पीते है किन्तु भुगतते उनके बेटे भी है |
          व्यसन तो मानव जाती के घोर शत्रु है | व्यसनी स्वयं का शत्रु है ही , किन्तु अपने मित्रों का भी शत्रु है | कबीरजी ने कहा है :
          कबीरा कुत्ते की दोस्ती , दो बाजू जंजाल |
          रीझे तो मुँह चाटे , खीझे तो पैर काटे ||
          कुत्ता यदि बहुत प्रसन्न हो जाये तो मुँह चाटने लगता है और नाराज हो जाये तो  काटने लगता है |
          जापान के किसी राजकीय पुरुष ने कहा था की : ‘ चाय और कॉफ़ी जैसे नशीले पदार्थ अपने देश में आने लगे है तो अब मुझे डर लगने लगा है की चीन और भारत जैसी कंगाल स्थिति कहीं अपने देश की भी न हो जाये क्योंकि यदि अपने देश के युवक इन नशीली वस्तुओं का इस्तेमाल करने लगेंगे तो उनके जीवन में क्या बरकत रहेगी ? उनकी संताने कैसी होंगी ? ‘
          बीडी पीनेवाले लड़के अपनी मानसिक शक्ति को नष्ट कर बैठते है | इतना ही नहीं , अपने जोश , बल और दृढ़ता  का भी नाश कर बैठते है | अक्लवान बुद्धिमान मनुष्य तो वह तो है जो गीता के ज्ञान का अमृतपान करके , जीवन्मुक्ति के विलक्षण आनंद की अनुभूति करने के लिए अपने जीवन में प्रयास करता है | वे मनुष्य , वे बालक-बालिकाएँ सचमुच में भाग्यशाली है जिनको गीता के ज्ञान में, उपनिषदों के ज्ञान में , संतों के सत्संग में , रामायण में , भागवत में श्रद्धा है , मंत्र में दृढ़ता है | वे सचमुच ही बड़े भाग्यशाली है जो व्यसनी लोगों के संपर्क से बचते है , उनकी नक़ल करने से बचते है और ध्रुव , प्रहलाद , नानक , कबीर , मीरा , तुकाराम , जनक , शुकदेव  आदि महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा पाकर अपने जीवन में उनके आचरणों को उतारने का प्रयास करते है | वे सचमुच महान है जो इन संतों के जीवन को निहारकर अपने जीवन को भी योग एवं आत्मविद्या से संपन्न करते है | ऐहिक विद्या , यौगिक विद्या ( अर्थात भक्तियोग , ध्यानयोग , नादानुसंधान योग आदि ) एवं आत्मविद्या से संपन्न होकर जो अपने जीवन को उन्नत करता है , वही मनुष्य वास्तव में इस पृथ्वी पर आने का फल प्राप्त करता है |
          उसीका जीवन सफल है जिसके जीवन में दृढ़ता है | उसीका जीवन सफल है जिसके जीवन में सत्संग के लिए स्नेह है | उसीका मनुष्य जन्म सफल है जिसके जीवन में सादगी , सच्चाई और प्रवित्रता है , जीवन व्यसनों से मुक्त है | उसे अनुकुलताएँ बाँध नहीं सकती और प्रतिकुलताएँ डिगा नहीं सकती |

अंक : ५४ ; माह : ९ जून १९९७


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