1.9.10

निद्रा संतुलित हो

निद्रा से शरीर को सर्वाधिक विश्राम मिलता है | विश्राम से पुनः बल की प्राप्ति होती है | शरीर को टिकाये रखने के लिए जो स्थान आहार का है, वही निद्रा का भी है “



त्रय उप्स्ताम्भा इत्याहार: स्वप्नों ब्रह्मचर्यमिति |

‘आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य शरीर के तीन उप्स्ताम्भ है अर्थात इनके आधार पर शरीर स्थित है |’

( चरक संहिता सूत्रस्थानं : ११.३५ )

इनके युक्तिपूर्वक सेवन से शरीर स्थिर होकर बल-वर्ण से संपन्न व पुष्ट होता है |

‘निद्रा’ की महत्ता का वर्णन करते हुए चर्काचार्याजी कहते है : ‘जब कार्य करते करते मन थक जाता है एवं इन्द्रियां भी थकने के कारण अपने अपने विषयों से हट जाती है, तब मन और इन्द्रियों के विश्रामार्थ मनुष्य सो जाता है| निद्रा से शरीर को सरवधिक विश्राम मिलता है | विश्राम से पुनः बल की प्राप्ति होती है |शरीर को टिकाये रखने के लिए जो स्थान आहार का है, वही निद्रा का भी है |

निद्रा के लाभ :

सुखपूर्वक निद्रा से शरीर की पुष्टि व आरोग्य, बल एवं शुक्र धातु की वृद्धि होती है| साथ ही ज्ञानेन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य करती है तथ व्यक्ति को पूर्ण आयु लाभ प्राप्त होता है | निद्रा उचित समय पे उचित मात्र में लेनी चाहिए | असमय तथा अधिक मात्रा में शयन करने से अथवा निद्रा का बिलकुल त्याग कर देने से आरोग्य व आयुष्य का ह्रास होता है | दिन में शयन स्वस्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है परन्तु जो व्यक्ति अधिक अध्यन, अधिक श्रम करतें हैं, धातु क्षय से क्षीण हो गए हैं, रात्री जागरण अथवा मुसाफ़री से थके हुए है वे तथा बालक, वृद्ध, कृष, दुर्बल व्यक्ति दिन में शयन कर सकतें हैं |

ग्रीष्म ऋतू में रात छोटी होने के कारण व शरीर में वायु का संचय होने के कारणदोन में थोड़ी देर शयन करना हितावह है | घी व दूध का भरपूर सेवन करने वाले, स्थूल, कफ- प्रकृतिवाले व कफजन्य व्याधियों से पीड़ित व्यक्तियों को सभी ऋतुओं में दिन की निद्रा अत्यंत हानिकारक है |

दिन में सोने से होने वाली हानियाँ :

दिन में सोने से जठराग्नि मंद हो जाती है | अन्न का ठीक से पाचन न होकर अपाचित रस ( आम ) बन जाता है, जिससे शरीर में भारीपन, शरीर टूटना, जी मचलाना, सिरदर्द, ह्रदय में भारीपन, त्वचारोग आदि लक्षण उत्पन्न होते है | तमोगुण बदनें से स्मरणशक्ति व बुद्धि का नाश होता है

अतिनिद्रा दूर करने के उपाय :

उपवास, प्राणायाम व व्यायाम करने से तथा तामसी आहार ( लहसुन, प्याज, मूली, उड़द, बासी व टेल हुए पदार्थ आदि ) का त्याग करने से अतिनिद्रा का नाश होता है |

अनिद्रा :

कारण : वात पित्त व कफ का प्रकोप, धातुक्षय, मानसिक क्षोभ, चिंता व शोक के कारण सम्यक नींद नहीं आती |

लक्षण : शरीर मसल दिया हो ऐसी पीड़ा, शरीर व सर में भारीपन, चक्कर , जम्भाइया, अनुत्साह व अजीर्ण ये वायु सम्बन्धी लक्षण अनिद्रा से उत्पन्न होते है |

अनिद्रा को दूर करने के उपाय :

सिर पैर तेल की मालिश, पैर के तलुओं में घी के मालिश, कान में नियमित तेल डालना, संवहन ( अंग दबाना ), घी, दूध, ( विशेषता: भैंस का ), दही व भात का सेवन, सुक्कर शय्या व मनोनुकूल वातावरण से अनिद्रा दूर होकर शीघ्र निद्रा आ जाती है |

सहचर सिद्ध तेल ( जो आयुर्वेदिक औषधियों की दूकान पर प्राप्त हो सकेगा ) से सिर की मालिश करने से शांत व प्रगाढ़ नींद आती है |

कुछ ख़ास बातें :

* कफ व तमोगुण की वृद्धि से नींद अधिक आती है तथा वायु व सत्वगुण की वृद्धि से नींद कम होती है|

* रात्री जागरण से वात की वृद्धि होकर शरीर रुक्ष होता है दिन में सोने से कफ की वृद्धि होकर शरीर में स्निग्धता बढ जाती है परन्तु बैठे बैठे थोड़ी सी झपकी लेना रुक्षता व स्निग्धता दोनों की नहीं बढाता व शरीर को विश्राम भी देता है |

* सोते समय पूर्व या दक्षिण की तरफ ही सिर करके सोना चाहिए|

* हाथ पैरों को सिकोड़कर, पैरों के पंजों की आंटी ( क्रास ) करके, सिर के पीछे तथा ऊपर हाथ रखकर व पेट के बल नहीं सोना चाहिए |

* सूर्यास्त के दो ढाई घंटे बाद सो जाना व सूर्योदय से दो ढाई घंटे पूर्व उठ गाना उत्तम है|

* सोने से पहले शास्त्र अध्यन करके प्रणव ( ॐ ) का गीर्घ उच्चारण करते हुए सोने से नींद भी उपासना में बदल जाती है |

निद्रा लाने का मंत्र :

“ शुद्धे शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा | “

इस मंत्र का जप करते हुए सोने से प्रगाढ व शांत निद्रा आती है |

[ऋषि प्रसाद; अंक – १९३ - माह जनवरी २००९ ]

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