14.3.11

जीवन परिवर्तक प्राणोपासना



भारतीय संस्कृति व उसके आस्था केन्द्रों पर आक्रमण पर आक्रमण किये जा रहे है। इसलिए संस्कृति प्रेमियों का सजग होकर विवेकबलवर्धक आत्मज्ञान के सत्संग तथा प्राणबलर्धक ॐकार के जप व ॐकार संयुक्त प्राणायाम का अवलम्बन लेना आवश्यक हो गया है। इस सगर्भा प्राणायाम से प्राणशक्ति का विकास होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि मन, प्राण और वीर्य इन तीनों में से एक को वश में कर लिया जाय तो शेष दो अपने-आप वश में हो जाते हैं। जिसने प्राण वश में कर लिये, समझ लो उसका मन वश हो गया है। मन की स्थिरता से आध्यात्मिक लाभ और वीर्य की स्थिरता से लौकिक-पारलौकिक लाभ सुनिश्चित है।
वैज्ञानिक दृष्टि से प्राणायाम का बहुत महत्त्व है। एक फेफड़े में तीस करोड़ वायुकोष्ठिकाएँ (अल्वीओलाई) होती हैं (टेक्सट बुक ऑफ मेडिकल फिजियोलोजी, पृष्ठ 496, लेखक – गायटन एण्ड हॉल), उनके द्वारा समस्त शरीर में शुद्ध रक्त का प्रसार होता है। प्राणायाम करने से वायु रूककर भीतर जाती है, वह बड़े वेग से फेफड़ों में प्रवेश करती है। इससे उन वायुकोष्ठिकाओं में जो मल आदि ठहरे होते हैं, वे दूर हो जाते हैं और रक्त भी वहाँ से शुद्ध होकर संचालित होता है। त्रिबंध के साथ प्राणायाम विशेष लाभदायी है।
त्रिबंध के लाभ
जालंधर बंधः
मन को स्थिरता प्राप्त होती है।
मानसिक तनाव, चिंता, क्रोध पर नियंत्रण रखने की क्षमता का विकास होता है।
मूल बंधः
ब्रह्मचर्य पालन, ओजवृद्धि तथा कुंडलिनी के जागरण में सहायक है।
जालंधर बंध के लाभ द्विगुणित हो जाते है।
गुदाद्वार की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। आँतों के वक्र प्रदेशों को उत्प्रेरित करता है।
अपचन को दूर करता है। बवासीर को ठीक करने में सहायक है।
उड्डीयान बंधः
उदर के सभी अंगों को व्यवस्थित करके उनकी क्रियाशीलता बढ़ाता है। यकृत (लीवर), फेफड़े, गुर्दे (किडनी) व तिल्ली की मालिश करता है तथा इनसे संबंधित रोगों को दूर करता है।
परेशानी व चिंता की अवस्था से मन को उबारकर स्थिरता प्रदान करता है।
सुषुम्ना नाड़ी की ओर प्राण के प्रवाह को विशेषरूप से प्रोत्साहित करता है।
सगर्भा त्रिबंध प्राणायाम की विधिः
विद्युत-कुचालक कोमल आसन (कम्बल आदि) बिछाकर उस पर सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन में बैठ जायें। मन में ॐकार या गुरूमंत्र का जप करें। दोनों नथुने अवरोधरहित हो जायें इसलिए बायें नथुने से श्वास लें, दायें से छोड़े तथा दायें से लें, बायें से छोड़ें। ऐसा दस बार करें।
अब मूल बंध लगा लें। (शौच करने की इन्द्रिय गुदाद्वार को अंदर की ओर सिकोड़कर ऊपर पेट की ओर खींचकर रखें) और उड्डीयान बंध भी लगा लें। (पेट को अंदर खींच लें।) दोनों नथुनों से अधिक से अधिक गहरा श्वास ले के जालन्धर बंध (ठोड़ी से कंठकूप पर दबाव डालें) लगा लें। मानसिक जप करते हुए एक से सवा मिनट तक श्वास को अंदर रोके रखें। फिर जालन्धर बंध खोलकर धीरे धीरे नथुनों से श्वास छोड़ दें। मूल बंध व उड्डीयान बंध भी खोलकर कुछ सेकंड सामान्य श्वास-प्रश्वास करें। पुनः ये दोनों बंध लगाकर दोनों नथुनों से श्वास पूरी तरह बाहर निकाल दें और जालंधर बंध लगा के इस स्थिति में 40 सेकन्ड तक रहें। तत्पश्चात् तीनों बंध खोलकर नथुनों से श्वास लें। यह एक प्राणायाम हुआ। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आँखें आधी खुली-आधी बंद रहें। मंत्रसहित ऐसे प्राणायाम करें। तीन से शुरू कर संख्या बढ़ाते हुए अंत में ऐसे दस प्राणायाम रोज करने चाहिए। कुछ ही दिन के अभ्यास से जीवन में महान परिवर्तन देखने को मिलेगा।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, नवम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 10,11 अंक 161
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