14.3.11

सूर्य की आराधना-उपासना का पर्व मकर सक्रान्ति



(मकर सक्रान्ति, उत्तरायणः 14 व 15 जनवरी)
भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य-पूजा का नियम प्राचीन काल से चला आ रहा है। श्रीरामजी द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख रामकथा में आता है। श्रीरामजी सूर्यवंशी थे।
सूर्यदेव मकर सक्रान्ति को प्रतिवर्ष धनु राशि का भ्रमण पूर्ण कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन से देवों का ब्राह्ममुहूर्त एवं उपासना का पुण्यकाल प्रारम्भ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। मकर सक्रान्ति का आध्यात्मिक तात्पर्य है जीवन में सम्यक क्रान्ति। इस दिन अपने चित्त को विषय विकारों से हटाकर निर्विकारी नारायण में लगाने का शुभ संकल्प करना चाहिए। देह को 'मैं' और संसार को मेरा मानने की गल्ती छोड़कर आत्मा को 'मैं' और ब्रह्माण्डव्यापी परमात्मा को अपना मानने की सम्यक क्रान्ति करनी चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि विकारों के संग से अपने-आपको बचाने के लिए आर्तभाव से भगवान को प्रार्थना करें और प्रेमभाव से भगवान का चिंतन करें। विकारों में सत्यबुद्धि न करें। फिसल गये हों तो भी सत्युबुद्धि नहीं और बच गये हो तो भी सत्यबुद्धि नहीं करें। अपने सत्यस्वरूप में, साक्षी चैतन्य स्वभाव में सत्यबुद्धि करें। इसके लिए सत्संग और जीवन्मुक्त महापुरुषों का संग बहुत ही आवश्यक है। जीवन्मुक्त महापुरुष ही हमारी क्रांति को सही दिशा तथा उचित मार्गदर्शन दे सकते हैं।
मकर-सक्रान्ति के दिन ही कपिल मुनि के आश्रम पर माँ-गंगा का पदार्पण हुआ था। भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही माघ शुक्ल अष्टमी के दिन स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था।
मकर सक्रान्ति के दिन दान का विशेष माहात्म्य है। 'पद्म पुराण' के अनुसार 'अयन-परिवर्तन (उत्तरायण-दक्षिणायन) के दिन, विषुव नामक योग आने पर, चन्द्र और सूर्य के ग्रहण में तथा सक्रान्ति के अवसरों पर दिया हुआ दान अक्षय होता है।' इस दिन गरीबों को यथायोग्य अन्नदान करें। सत्साहित्य का दान भी कर सकते हैं और कुछ नहीं तो भगवन्नाम-जप का प्याऊ लगाकर वातावरण को पावन जरूर करना चाहिए। और इन सबसे अच्छा है कि काम – क्रोधादि अपने सब विकारों तथा अपने अहं को भगवान के, सदगुरू के श्रीचरणों में अर्पित कर दिया तो फिर उनका मार्गदर्शन, शक्ति-सम्प्रेषण व परम हितकारी अनुशासन आपको जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा दिला देगा।
सहस्रांशु की सहस्र किरणों के पृथक-पृथक प्रभाव हैं। सूर्य की पहली किरण जहाँ आसुरी सम्पत्तिमूलक भौतिकी उन्नति की विधेयक है, वहीं सूर्य की सातवीं किरण भारतवर्ष में दैवी सम्पत्तिमूलक आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत में गंगा-यमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात् मकर सक्रान्ति का विशेष उत्सव आयोजित होता है। तत्त्वदर्शी महर्षियों ने पर्व व व्रत-विज्ञान की विशेष महिमा बतायी है। उनके अनुसार व्रतों के प्रभाव से प्राणी का अंतःकरण शुद्ध होता है, संकल्पशक्ति बढ़ती है तथा ज्ञानतंतु विकसित होते हैं। अंतस्तल में सच्चिदानंद परमात्मा के प्रति श्रद्धा एवं भक्तिभाव का संचार होता है। मकर सक्रान्ति आत्मचेतना को विकसित करने वाला व्रत-पर्व है।
व्रत की विधिः प्रातः काल तिल का उबटन लगाकर तिलमिश्रित जल से स्नान करें। स्नान के पश्चात अपने आराध्य-देव की पूजा-अर्चना करें। ताँबे के लोटे में रक्तचंदन कुमकुम, लाल रंग के फूल तथा जल डालकर पूर्वाभिमुख होकर सूर्य-गायत्री मंत्र सके तीन बार सूर्य भगवान को जल दें और सात बार अपने ही स्थान पर परिक्रमा करें। सूर्य गायत्री –
ॐ आदित्याय विदमहे भास्कराय धीमहि।
तन्नो भानुः प्रचोदयात्।
फिर गायत्री मंत्र तथा 'आदित्यहृदय स्तोत्र' का पाठ करें। पक्षियों को अनाज व गाय को घास, तिल, गुड़ आदि खिलायें।
'पद्म पुराण' के अनुसार 'जो मनुष्य पवित्र होकर भगवान सूर्य के आदित्य, भास्कर, सूर्य, अर्क, भानु, दिवाकर, सुवर्णरेता, मित्र, पूषा, त्वष्टा, स्वयम्भू और तिमिराश – इन 12 नामों का पाठ करता है, वह सब पापों और रोगों से मुक्त होकर परम गति को पाता है।'
आज से तिल-तिल दिन बढ़ने लगते हैं, अतः इसे 'तिल सक्रान्ति' के रूप में भी मनाया जाता है। 'विष्णु धर्मसूत्र' कहा गया है कि पितरों के आत्मा की शांति, स्वयं के स्वास्थ्यवर्धन व सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं – तिल जल स्नान, तिल दान, तिल भोजन, तिल जल अर्पण, तिल-आहुति तथा तिल-उबटन मर्दन। किंतु ध्यान रखें कि सूर्यास्त के बाद तिल व तिल के तेल से बनी वस्तुएँ खाना वर्जित है।
यह पावन पर्व पारस्परिक स्नेह और मधुरता की वृद्धि का महोत्सव है, इसलिए इस दिन लोग एक-दूसरे को स्नेह के प्रतीक तिल और मधुरता का प्रतीक गुड़ देते हैं।
इस मकर सक्रान्ति पर्व पर हम यह संकल्प लें कि 'आज से हम आपसी मतभेद व वैमनस्य को भुलाकर सत्शास्त्रों व सदगुरूओं के ज्ञान को आत्मसात् करेंगे और उनके बताये हुए मार्ग पर चलकर शाश्वत सुख, शाश्वत आनंद को पायेंगे।'
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 3,4,5 अंक 162
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